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जैसे-जैसे अमेरिका के प्रतिबंधों से चीन का खून बह रहा है, ड्रैगन भारत से दोस्ती करना चाहता है।

चाइना की इकॉनमी एक ऐसे सिस्टम पर टिकी है जो स्टेबल ग्रोथ सुनिश्चित करता है और पॉजिटिव spill overs पैदा करता है। चाइनीज़ मैन्युफैक्चरिंग एक कंप्लीट और लगातार अपग्रेड हो रहे इंडस्ट्रियल सिस्टम पर आधारित है, जिसमें R&D में sustained investment और इनोवेशन पर मजबूत फोकस है। चाइना खुद को इकोनॉमिक ग्लोबलाइजेशन और मल्टीलैटरलिज्म का डिफेंडर बताता है

लेकिन असली बात नीचे छुपी है — चाइना-इंडिया इकोनॉमिक और ट्रेड रिलेशनशिप को complementary और mutual benefit पर आधारित बताया गया है।

अब देखिए, अमेरिका ने टैरिफ्स के ज़रिए देशों को, खासकर global south देशों को, उनके डेवलपमेंट के अधिकार से वंचित किया है। यहां चीन जानबूझकर ‘ग्लोबल साउथ’ का इस्तेमाल करता है क्योंकि उसे पता है कि भारत और मौजूदा सरकार इस शब्द के प्रति संवेदनशील है। चीन यही कह रहा है कि, “देखो, तुम भी परेशान हो अमेरिकी टैरिफ से, और हम भी। तो चलो मिल जाते हैं और अमेरिका के खिलाफ साथ खड़े होते हैं।”

चीन इंडिया को यह चेतावनी भी देता है कि अमेरिका के साथ गठबंधन मत कर लेना। लेकिन यही चीन चाहता है कि भारत उसके साथ मिल जाए और अमेरिका के खिलाफ हो जाए। यानी एक तरफ वो अमेरिका के साथ न जाने की बात कर रहा है, दूसरी तरफ खुद के साथ आने का न्योता भी दे रहा है।

“ट्रेड एंड टैरिफ वॉर में कोई विजेता नहीं होता,” यह लाइन ट्वीट की गई है — और यह वही चीन है जो खुद सबसे बड़ा protectionist है। जब तक आप ग्राहक हैं, चीन में बिज़नेस करना बहुत आसान लगता है, लेकिन जब आप वहां कुछ बेचना चाहते हैं, तब असली चुनौती शुरू होती है।

भारत चुपचाप बैठा है। अमेरिका की भी सुनता है, चीन की भी नहीं सुनता। भारत की नीति न्यूट्रल है — “हम अपनी तरफ हैं।” रूस-यूक्रेन युद्ध में भी भारत ने यही स्टैंड लिया, न रूस की तरफ न यूक्रेन की तरफ।

अब अमेरिका को भी भारत की जरूरत महसूस हो रही है, और वह चाहता है कि भारत उसके साथ आए। वहीं चीन भी यही चाहता है। चीन की एम्बेसी से ट्वीट कर कहा जा रहा है कि “अमेरिका ने बहुत गलत किया है, आओ मिलकर जवाब दें।”

फर्स्टपोस्ट के साथ बातचीत में जेफ्री डी सैक्स कहते हैं कि अमेरिका की विदेश नीति ‘divide and rule’ पर आधारित है। चीन कहता है, “अमेरिका पर भरोसा मत करो।” लेकिन कोई यह नहीं कह रहा कि “चीन पर भी भरोसा मत करो।”

गलवान में चीन ही आया था, न कि अमेरिका। अमेरिका जूते मार रहा है टैरिफ के जरिए, लेकिन चीन तो सीधा बॉर्डर पर आ जाता है। इसलिए चीन पर भी भरोसा नहीं किया जा सकता।

हर देश अकेला होता है, और हर देश को अपने हित खुद देखने पड़ते हैं — और यही आत्मनिर्भर भारत की असली ताकत है।

इसके बाद ट्रंप की कहानी आती है जो कहता है कि “गाज़ा एक इनक्रेडिबल पीस ऑफ रियल एस्टेट है”, और वह वहां स्काई स्क्रेपर, नाइट क्लब, बीच रिसॉर्ट बनाना चाहता है, लेकिन सबसे पहले 20 लाख पलेस्टीनियों को वहां से निकालना चाहता है।

वहीं दूसरी ओर एलन मस्क भी कहता है कि टैरिफ के चक्कर में मत पड़ो, यह सबको नुकसान पहुंचाएगा।

तो दोस्तों, यही है असली कहानी — जैसे-जैसे अमेरिकी प्रतिबंधों से चीन का खून बह रहा है, ड्रैगन भारत से दोस्ती की मीठी-मीठी बातें कर रहा है। पर भारत अपनी नीति पर टिका है — न अमेरिका की तरफ, न चीन की तरफ, सिर्फ भारत की तरफ।