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चीन, अमेरिका और भारत की चालें: वैश्विक दक्षिण की नई लड़ाई?

🌐 चीन, अमेरिका और भारत की चालें: वैश्विक दक्षिण की नई लड़ाई?

प्रस्तावना
विश्व राजनीति में आज एक नई कशमकश चल रही है – अमेरिका और चीन के बीच आर्थिक तनातनी, और भारत के सामने बढ़ती कूटनीतिक चुनौतियाँ। क्या भारत को अमेरिका के साथ जाना चाहिए या चीन के साथ खड़ा होना चाहिए? आइए समझते हैं इस वैश्विक गेम का असली चेहरा।


🔍 चीन की ‘मीठी बातें’ और असली मंशा

हाल ही में चीन ने एक सार्वजनिक बयान में कहा कि उसकी अर्थव्यवस्था स्थिर है, वैश्विक व्यापार को मजबूत बना रही है, और बाकी देशों के लिए फायदे का सौदा है। वो खुद को बहुपक्षवाद और ग्लोबलाइजेशन का रक्षक बता रहा है।

पर क्या यह सब सच है?

दरअसल, चीन की ये रणनीति सिर्फ अमेरिका के विरोध में वैश्विक दक्षिण (Global South) के देशों को एकजुट करने की कोशिश है। खासकर भारत को यह संकेत दिया गया कि “हम दोनों अमेरिका की टैरिफ नीतियों से परेशान हैं, चलो एक साथ खड़े हों।”


🇮🇳 भारत की स्थिति: तटस्थता है ताकत

भारत ने हमेशा अपनी स्वतंत्र विदेश नीति को प्राथमिकता दी है। चाहे यूक्रेन-रूस युद्ध हो या अमेरिका-चीन व्यापार युद्ध — भारत ने किसी का पक्ष नहीं लिया।

यही तटस्थता अब भारत के पक्ष में काम कर रही है। चीन और अमेरिका दोनों चाहते हैं कि भारत उनके साथ खड़ा हो। पर भारत का रास्ता है आत्मनिर्भरता और संतुलित कूटनीति।


🇺🇸 अमेरिका और उसकी रणनीति

अमेरिका की विदेश नीति पर कई विशेषज्ञ, जैसे जेफ्री सैक्स, आरोप लगाते हैं कि वह “Divide and Rule” यानी “फूट डालो और राज करो” की नीति अपनाता है।
लेकिन क्या चीन कोई बेहतर विकल्प है?

गलवान जैसी घटनाएँ यह दिखाती हैं कि चीन भी भारत का सच्चा मित्र नहीं बन सकता।


💼 चीन से व्यापार: आसान खरीद, मुश्किल बिक्री

चीन से सस्ता सामान खरीदना आसान है, लेकिन चीन में जाकर व्यापार करना बेहद कठिन। इसका कारण है चीन की प्रोटेक्शनिस्ट नीति — मतलब वो अपने देश को बचाते हुए बाहर वालों को सीमित प्रवेश देता है।

भारत जैसे देशों के लिए यह असंतुलित व्यापार का संकेत है।


🇵🇸 गाजा पट्टी और ट्रंप का बयान

पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने गाज़ा पट्टी को एक ‘Real Estate Opportunity’ बताया। उन्होंने कहा कि अगर गाजा के 20 लाख लोगों को हटा दिया जाए, तो वहाँ स्काईस्क्रैपर्स, नाइट क्लब और रिसॉर्ट बनाए जा सकते हैं।

ये बयान दिखाता है कि राजनीति, व्यापार और मानवता कैसे टकराते हैं।


🕌 अरब देशों और फिलिस्तीनियों का रिश्ता

एक और दिलचस्प पहलू यह है कि जिन अरब देशों ने फिलिस्तीनियों को कभी समर्थन दिया, उन्होंने बाद में दूरी बना ली। कुवैत, जॉर्डन और मिस्र जैसे देशों के साथ इनके रिश्ते खराब हुए।

आज कोई भी अरब देश नहीं चाहता कि गाजा के शरणार्थी उनके यहाँ बसें।


🤖 मस्क और ग्लोबल व्यापार

वाशिंगटन पोस्ट की रिपोर्ट के मुताबिक, एलन मस्क ने टैरिफ वॉर को लेकर चिंता जताई है। उनका मानना है कि इससे वैश्विक व्यापार अस्थिर हो सकता है।


✅ निष्कर्ष: भारत के लिए रास्ता क्या है?

दुनिया में कोई भी देश पूरी तरह दोस्त नहीं होता — हर किसी की प्राथमिकता अपने हित होते हैं।

भारत के लिए सबसे बेहतर रणनीति है:

  • तटस्थ रहना

  • आत्मनिर्भर बनना

  • चीन और अमेरिका दोनों से संतुलन बनाए रखना

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